छत्तीसगढ़ में नालों को नरवा कहा जाता है। इस योजना के तहत राज्य के नालों पर चेकडेम बना कर पानी रोकना तथा उस पानी को खेतों की सिंचाई के लिये उपलब्ध कराना है। इसके अलावा नालों के जरिए बारिश का जो पानी बह जाता है, उसे रोक कर भूगर्भीय जल को रिचार्ज करना है। नरवा योजना मुख्यतः इस वैज्ञानिक तकनीक पर आधारित है कि पानी का वेग कम होने से धरती का रिचार्ज तेजी से होता है। क्योंकि धरती को जल सोखने के लिए अधिक समय मिलता है। अक्सर बरसाती नालों में जितने तेजी से पानी चढ़ता है उतने ही तेजी से उतर भी जाता है। अब किसानों को खरीफ के साथ ही रबी फसलों के लिए भी पर्याप्त मात्रा में पानी मिल रहा है, आसपास के क्षेत्रों में भूजल स्तर भी बढ़ रहा है। साथ ही मनरेगा के तहत नरवा विकास कार्यों में शामिल होकर ग्रामीणों को रोजगार भी प्राप्त हो रहा है।
दुर्ग जिले में नरवा अंतर्गत एरिया ट्रीटमेंट और ड्रेनेज लाइन ट्रीटमेंट के कार्यों को नया आकार दिया गया है। एरिया ट्रीटमेंट के लिए कच्ची नाली, निजी डबरी, नया तालाब, वृक्षारोपण, वाटर अब्सोरप्शन ट्रेंच, भूमि सुधार, रिचार्ज पिट एवं कुओं का निर्माण किया गया है। ड्रेनेज लाइन ट्रीटमेंट के लिए नाला पुनरोद्धार एवं गहरीकरण, अन्य नवीन नरवा जीर्णाेद्वार, चेक डेम, चेक डेम जीर्णाेद्वार, ब्रशवूड चेक डेम, रिचार्ज पिट इत्यादि का निर्माण किया गया है। नरवा अंतर्गत स्वीकृत कार्य के आंकड़े प्रशंसनीय हैं। डीपीआर में कुल 6207 कार्य लिए गए जिनमें से 6164 कार्यों को स्वीकृति मिल चुकी है। 5890 कार्य पूरे हो चुके हैं । 304 ग्राम पंचायतों में कुल 196 नरवा बनाये गए हैं एवं नरवा का उपचार किया गया है। 89 डाईक के साथ कुल 167660.81 हे. का जल संग्रहण क्षेत्र बनाया गया है ।
मिट्टी में नमी की मात्रा में वृद्धि का आंकलन क्षेत्र में वनस्पति अच्छादन व कृषि की उत्पादकता की स्थिति के आधार पर किया जाता है। नमी के चलते ही पौधों की जड़े फैलती है और पौधे नमी के साथ हो मिट्टी से अपना भोजन लेते हैं। ज्यादा पानी की वजह से फसल में आद्र गलन व जड़ गलन इस तरह के फफूंदजनित रोग की समस्या आती है। भूमिगत जल सतह की स्थिति का आंकलन वर्ष में दो बार किया जाता है। प्री-मॉनसून मार्च से मई तक और पोस्ट-मॉनसून अक्टूबर से दिसंबर तक होता है।
नरवा में प्रवाह का आंकलन रू लिटर प्रति सेकेंड के हिसाब से नरवा में पानी के प्रवाह का आंकलन किया जाता है। जब नरवा में पानी की मात्रा अच्छी होती है तो किसान को खेती में सुविधा मिलती है। इस सूचक के प्रभाव का आकलन रबी और खरीफ फसल के सिंचित रकबे में परिवर्तन के आधार पर किया जाता है। किसानों द्वारा नाले के पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा रहा है, जिससे फसल की उत्पादकता बढ़ी है।