यह मूल रूपअनुवाद से कृतिवास के रामायण पर आधारित है। यह वाल्मीकि का  ही नहीं है अपितु उनकी कल्पनाशीलता भी इसमें है।

कृतिवास ने श्रीराम के कोमल पक्षों को उभारा है, वे बहुत भावुक हैं और चूंकि अरण्य कांड में सीता हरण जैसे कारुणिक प्रसंग हैं अतएव यह भावुकता इस कथा में स्पष्ट रूप से उभरती है।

सुमधुर बांग्ला भाषा में यह कथा हो रही है और बात दंडकारण्य की हो रही है। यह भारत की अद्भुत सांस्कृतिक एकता है। बंगाल से कृतिवास से लेकर तमिल के कम्बन तक सबके  सृजन की भूमि एक ही है।

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